पुराणी धरोहर कोस मीनारों में नहीं है जान, और सरकार है अनजान

पुराणी  धरोहर कोस मीनारों में नहीं है  जान, और  सरकार है अनजान

किसी भी देश की उन्नति में उसकी संस्कृति , सभ्यता , मूल्य , परंपराओं और सहेजी गई धरोहरों का बहुत महत्व होता है । मगर जीटी रोड हाईवे के साथ लगती कई जगहों पर खड़ी कोस मीनारें देखरेख के अभाव में खस्ताहाल में होने लगी हैं करीब 500 साल पुरानी ऐतिहासिक धरोहर कोस मीनारें कभी रास्ता दिखाने काम करती थी आज युवा पीढ़ी को इसके बारे में भी नहीं पता जानकारी के मुताबिक शेरशाह सूरी ने 1540 - 45 तक शासन | किया था  इन पांच सालों के दौरान दिल्ली , सोनीपत , पानीपत , कुरुक्षेत्र , अंबाला , लुधियाना , जालंधर , अमृतसर से पेशावर ( पाकिस्तान ) तक व दिल्ली - आगरा राजमार्ग पर हरियाणा और पंजाब में कोस मीनारें बनवाई थी पंजाब और हरियाणा में जीटी रोड की कुल लंबाई 500 किमी है  इन दोनों राज्यों में 250  250 किलोमीटर का हिस्सा पड़ता है एक कोस की दूरी के मुताबिक दोनों राज्यों में करीब 80 - 80 कोस मीनारें बनी थी , जो सूचक यंत्र का काम करती थी  जिसमें से अब कुछ ही कोस मीनारें अस्तित्व में है                                                                                  

 

 

 

 

 

 

इन मीनारों में से साहनेवाल कोस मीनार भी है , जो जर्जर हालत में है । कस्बा साहनेवाल के हाईस्कूल के मैदान में खड़ी कोस मीनार के आसपास कोई रोकथाम नहीं है  न ही किसी तरह का चेतावनी बोर्ड दिखाई देता है इसकी ईंटें बाहर दिखने लगी है मीनार की बाउंड्री पर कूड़े के ढेर लगे हैं । इसी तरह बहुत सारे कोस मीनार खेतों के बीच खड़े भी दिखाई देते हैं पंजाब सरकार को चाहिए कि इस विरासती ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए शेरशाह सूरी ने हर दो - तीन कोस पर एक मीनार बनवाई गई थी पहले के समय में किलोमीटर से नहीं कोस से मार्ग की दूरी मापी जाती थी  एक कोस में लगभग तीन किलोमीटर होते हैं । इन्हीं मीनारों को देखकर सैनिकों के काफिले चलते थे और डाक सिस्टम भी इन्हीं की तर्ज पर चलता था । 30 फीट ऊंची यह मीनार ईंटों और चूना  पत्थर के साथ बनाई गई थी ताकि दूर से मीनार नजर आए विशेषकर जीटी रोड के साथ साथ इन कोस मीनारों को देखकर घुड़सवार , बैलगाड़ी व घोड़ा गाड़ी से यात्रा करने वाले लोगों व सैनिकों को दूरी का आंकलन हो जाया करता था ये है सख्त नियम : इन कोस मीनारों को नोटिफाई करके नुकसान पहुंचाने पर सजा - योग्य अपराध करार दिया हुआ है और कई मीनारों पर चेतावनी बोर्ड भी लगा रखे हैं लेकिन सरकार ने इससे ज्यादा कुछ नहीं किया प्राचीन स्मारक होने के कारण मीनार का राष्ट्रीय महत्व है इस कारण यदि कोई व्यक्ति इस स्मारक को क्षति पहुंचाता है तो उसे तीन माह तक सजा और पांच हजार रुपए तक जुर्माना किया जा सकता है । आज की दिल्ली लाहौर सड़क बेशक अमृतसर होकर पाकिस्तान जाती है पर यह कोस मीनार फिल्लौर से नकोदर की तरफ मुड़ जाते हैं नकोदर से कपूरथला , तरनतारन , झबाल , सराए अमानत की तरफ से अटारी के दक्षिण से यह लाहौर को जाते हैं उस समय लाहौर जाने वाला कच्चा रास्ता यही होगा यह अमृतसर से नजदीक पड़ता है अफसोस इस बात का है कि ऐतिहासिक कोस मीनार के बारे में आज की युवा पीढ़ी भी अंजान है वहीं , बुजुर्गों की मानें तो साहनेवाल में इस धरोहर का होना फन की बात है ।